महर्षि वाल्मीकि रामायण में लिखते हैं कि "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी"। यानि माता और मातृभूमि का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर होता है। ये सत्य है और हर मनुष्य को इसे स्वीकार भी करना चाहिए। मनुष्य की जननी और जन्मभूमि दोनों एक से अधिक नहीं हो सकते। जननी और जन्मभूमि कैसी भी हो, वो अतुल्य होती है। वो हमारे मान, समान और स्वाभिमान का प्रतीक है। आज बिहार दिवस है। आज दिवस है मेरे जैसे उन 12 करोड़ बिहारियों का, जिन्हें अपनी जन्मभूमि पर गर्व है। हां गर्व इसलिए है क्योंकि इस धरती ने दुनिया को बताया कि गणतंत्र नाम की भी कोई चीज होती है। जो अखंड भारत का राग आज जपते हैं, उन्हें बता दूं कि जब सच में अखंड भारत हुआ करता था तो उसका शासन इसी धरती से नियंत्रित होता था। जब दुनिया विश्वविद्यालय नामक शब्द नहीं जानती थी तब यहां नालंदा और विक्रमशिला में हजारों छात्र शिक्षा ग्रहण करते थे। आर्यभट्ट हो या चाणक्य, वो इस धरती की उपज है। इस धरती ने दुनिया को बुद्ध और महावीर दिए। शांति का पाठ चारों और इस धरती की देन है। इस धरती से गांधी ने सत्याग्रह शुरू किया, जिसके कारण वो गांधी से महात्मा बनें। जब देश आजाद हुआ तो देश के जो पहले महामहिम थे वो इस मिट्टी से निकले थे। संविधान लागू हुआ और कुछ वर्षों बाद में देश में आपातकाल लगाकर इस लोकतांत्रिक राष्ट्र की गरिमा को तार तार करने की कोशिश की गई तो इसके खिलाफ हुंकार सबसे पहले यहां से शुरू की गई।
हां ये कड़वा सच है कि आजादी के बाद नेताओं की कमजोर इच्छाशक्ति और भ्रष्टाचार के कारण इस राज्य की गरिमा का पतन शुरू हुआ जो अब तक जारी है। आजादी के बाद राज्य के टुकड़े हुए और आर्थिक रूप से संपन्न पक्ष राज्य की सीमा से बाहर हो गया। स्थिति ये हो गई कि किसी भी रिपोर्ट में लोग राज्य का नाम ऊपर से नहीं, नीचे से ढूंढते हैं। राजनैतिक लापरवाही, प्रशासनिक भ्रष्टचार, उच्च बेरोजगारी के कारण देश के किसी भी कोने में सबसे निम्नस्तरीय काम करता आदमी बिहारी मिलेगा। रोजी रोटी कमाने के कारण बिहारी अपने घर परिवार से हजारों किलोमीटर दूर केरल हो या फिर मणिपुर, कश्मीर हो या फिर महाराष्ट्र हर जगह मिल जाएगा। कभी महाराष्ट्र से चुन चुन कर भगाया जाएगा तो कभी गुजरात से निकाला जाएगा, लेकिन वो बिहारी है मजबूरन वो फिर वापस जाएगा।
लेकिन फिर भी "बिहार" और "बिहारी" वाली मानसिकता से काफी ऊपर है बिहार। आज भले हमारा श्याम पक्ष चल रहा है लेकिन उम्मीद है कल हमारा बेहतर होगा। इसलिए अंत मैं नासिर काज़मी की दो लाइन से खत्म करना चाहूंगा कि
वक़्त अच्छा भी आएगा 'नासिर'
ग़म न कर ज़िंदगी पड़ी है अभी।
Write a comment ...