इश्क़ किया है मैंने, चोरी नही की है।

साल 2002 में एक फिल्म आई थी "दिल है तुम्हारा"। इस फिल्म का एक गाना आज भी बहुत मशहूर है " दिल लगा लिया, मैंने तुमसे प्यार कर के"। इस गाने को लिखा था महशूर गीतकार समीर ने, और इसे आवाज दी थी अलका याग्निक तथा उदित नारायण ने। इस गाने की एक लाइन है कि इश्क किया है मैंने चोरी नही की है। ये इश्क क्या होता है ?
क्या इश्क़ वो होता है जो आपके रातों की नींद उड़ा दे ? या फिर वो जो नींद में आप तकिए को गले लगाकर, आंखे बंद कर भी अपने चेहरे की मुस्कराहट बरकरार रखे। पेड़-पौधे नदियां, पहाड़, जंगल से आप बातें करने लगे। धर्म, जाति, पंत, मजहब, लिंग ये सब खत्म हो जाए और इंसान,इंसान में इंसान देखने लगे।

दुनिया में अब तक कोई इश्क़ की साफ साफ परिभाषा नहीं दे पाया है। इसको लेकर सबके अपने अपने विचार है, अपने अपने तथ्य हैं। इश्क़ एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ होता है प्रेम का वह रूप जिसमे इंसान पूरी तरह लीन हो जाता है। जरूरी नहीं है की इश्क़ सिर्फ इंसान और इंसान के बीच हो, किसी को किताबों से इश्क़ होता है, किसी को फिल्मों, किसी को जानवरों से तो किसी को प्रकृति से। इश्क़ के कई स्वरूप हो सकते है। इसमें इंसान अपने प्रिय के चाहे कितना करीब हो, वो उसके और नजदीक जाने के प्रयत्न में लगा रहता है। दोनों एक दूसरे के विचार, अनुभूति, हृदयतल की बातों को महसूस करने की कोशिश करते है। ये क्रिया निरंतर चलते रहती है, और धीरे धीरे इश्क़ और भी प्रगाढ़ होते चला जाता हैं। इश्क़ हमें एक अहसास देता है कि इंसान की परिभाषा क्या होती है।

तस्वीर- हिंदुस्तान टाइम्स

लेकिन अधिकतर लोग इश्क़ का नाम तक लेने से डरते है। इश्क़, प्रेम, मोहब्बत, प्यार जैसे शब्दों को गलत माना जाता है। हमारे समाज में स्थापित रूढ़िवादी विचार और पितृसत्तात्मक सोच ने इसे हमेशा गलत नजरिए से देखा हैं। संस्कृति और सभ्यता के तथाकथित रखवाले ने कभी इन्हें मुख्यधारा में नहीं आने दिया। मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ लिखते है, " वो लोग बहुत खुश-क़िस्मत थे, जो इश्क़ को काम समझते थे।" फरवरी का दूसरा सप्ताह इश्क़ का सप्ताह के रूप में माना जाता है। वैसे तो प्यार किसी दिन, सप्ताह, साल का मोहताज नहीं होता लेकिन इस सप्ताह में प्रेमी प्रेमिका का उत्साह अधिक रहता है। शुरुआत फूलों की खुशबू से होकर, इश्क़ का इजहार, चॉकलेट की मिठास, टेडी जैसी खुशियां, कसमे वादे के साथ जीवन के महत्वपूर्ण समय साथ गुजारने की बात होती है। दुनिया की बातों से हटकर जीवन एक दूसरे पर न्योछावर करने का संकल्प लेते हैं। और फिर अंत में निदा फ़ाज़ली की ये दो लाइनें आती है,
होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है।

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Rishabh Rajput

खुद की तलाश में भटकता एक बटोही।